महाबोधि मंदिर : यह मंदिर दुनिया भर मे बसे बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए सबसे पवित्र स्थल है। यह क्षेत्र बोधगया नाम से ज्यादा प्रचलित है। दुनिया मे हर बौद्ध भिक्षु का एक ही सपना होता है की, वह अपने जीवन काल मे एक बार महाबोधि मंदिर के दर्शन कर आए।
यह मंदिर गौतम बुद्ध के जीवन से संबंधित चार पवित्र स्थानों में से एक है। महाबोधि मंदिर परिसर एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है। यह मंदिर विशेष रूप से महात्मा गौतम बुद्ध के ज्ञान बोध की प्राप्ति से जुड़ा हुआ है। आज हम इसी महान मंदिर के बारे मे विस्तार से जानेंगे।
Mahabodhi Mandir Bodhgaya
पुरानी महाबोधि मंदिर का निर्माण चक्रवती सम्राट अशोक ने करवाया था। दरअसल वे 260 ई०पू० के आसपास बोधगया आए थे। और उन्होंने ही महाबोधि वृक्ष के पास एक मंदिर का निर्माण कराया था। उस समय इस मंदिर को ईटों की मदद से तकरीबन 160 फीट उच्चा बनवाया गया था।
Hiuen Tsang’s (एक चीनी पर्यटक) ने राजा हर्ष के काल खंड मे भारत का दौरा किया था। उन्होंने 404-05 ईस्वी मे महाबोधि मंदिर और बोधि वृक्ष के बारे में अपनी पुस्तक Si-yu-ki मे वर्णन किया था।
उन्होंने ये भी कहा था की बोधि वृक्ष के चारों ओर दीवारें बनी हुई है। उन्होंने भी इस मंदिर की उच्चाई तकरीबन 160 फीट बताई थी।
वर्ष 2002 में यूनेस्को ने इस स्थल को विश्व विरासत स्थल घोषित किया। महाबोधि मंदिर स्थल भगवान बुद्ध के जीवन से जुड़ी घटनाओं और उनकी पूजा से संबंधित तथ्यों के असाधारण अभिलेख प्रदान करता हैं।
महाबोधि मंदिर का निर्माण किसने करवाया
जैसा की हम लोग जानते है महाबोधि मंदिर परिसर एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है। इस मंदिर का निर्माण कार्य दो काल खंडों मे हुआ है। वर्तमान मे जो मंदिर है उसका निर्माण पाँचवी या छठी शताब्दी मे हुआ था।
जबकि पहली मंदिर का निर्माण चक्रवती सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ई०पू० मे करवाया था। सम्राट अशोक ने मंदिर निर्माण के साथ ही एक कटघरा और स्मारक स्तंभ का भी निर्माण करवाया था। उतक्रिस्ट शिल्पकारी से बनाया गया पत्थर का कटघरा पत्थर में शिल्पकारी की प्रथा का खूबसूरत शुरूआती उदाहरण है।
ये अपने तरह का अनोखा मंदिर है जिसका निर्माण पूरी तरह से ईटों से किया गया है। और यह मंदिर गुप्त काल से आज तक सुरक्षित खड़ा है।
महाबोधि मंदिर कहां स्थित है
यह मंदिर बिहार राज्य की राजधानी पटना से लगभग 115 किमी दूर, गया के जिला मुख्यालय से 16 किमी दूर स्थित है। बोधगया राष्ट्रीय राजमार्ग (NH) 83 पर स्थित है।
बोधगया, गया से सटा हुआ एक छोटा सा शहर है। बोधगया में स्थित बोधि पेड़़ के नीचे ही तपस्या करते हुए भगवान गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
संन् 1949 के बोधगया मंदिर अधिनियम के तहत यह मंदिर बिहार राज्य सरकार की संपती है। बोधगया मंदिर प्रबंधन कमेटी (बीटीएमसी) और सलाहकार बोर्ड के माध्यम से बिहार सरकार इस मंदिर की सुरक्षा की जिम्मेदारी उठाती है।
बोधगया का इतिहास
इसका इतिहास शुरू होता है तकरीबन 500 ई०पू० में। जब गौतम बुद्ध फाल्गु नदी के तट पर पहुंचे और बोधि वृक्ष के नीचे तपस्या करने लगे। तीन दिन और तीन रात के कठिन तपस्या के उपरांत उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई।
जिसके बाद वे भगवान बुद्ध के नाम से दुनिया मे प्रचिलित हुए। ज्ञानप्राप्ति के बाद उन्होंने वहां ७ हफ्ते अलग अलग जगहों पर ध्यान करते हुए बिताया। और उसके बाद वे सारनाथ जाकर बौद्ध धर्म का प्रचार करने लगे।
भगवान बुद्ध के अनुयायिओं ने बाद में उसी जगह पर ज्ञानप्राप्ति के लिए जाना शुरू कर दिया, जहां गौतम बुद्ध ने वैशाख महीने में पुर्णिमा के दिन ज्ञान की प्रप्ति की थी।
धीरे धीरे ये जगह बोधगया के नाम से जाना जाने लगा। और पूरी दुनिया मे इसी दिन को बुद्ध पुर्णिमा के नाम से बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है।
महाबोधि मंदिर से जुड़ी प्रमुख बाते
- संन् 2002 मे महाबोधि मंदिर परिसर को यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर घोषित किया।
- भगवान बुद्ध ने वैशाख महीने में पुर्णिमा के दिन ज्ञान की प्रप्ति की थी।
- पहली मंदिर का निर्माण चक्रवती सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ई०पू० मे करवाया था।
- वर्तमान मंदिर का निर्माण पाँचवी या छठी शताब्दी मे हुआ था।
- बोधगया मंदिर अधिनियम के तहत यह मंदिर बिहार राज्य सरकार की संपती है।
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