बिहार में कृषि के पिछड़ेपन का कारण :- बिहार के कृषि में पिछड़ने के वैसे तो काफी कारण है, मगर हम कुछ महत्वपूर्ण कारण पर चर्चा करेंगे। वैसे देखा जाए तो पूरे भारत में ही कृषि क्षेत्र काफी पिछड़ा हुआ है।
उसके कारण अलग अलग क्षेत्र में भिन हो सकते है। जितनी भारत के पास कृषि योग्य भूमि है उसका हम सम्पूर्ण दोहन नहीं कर पा रहे है।
वैश्विक तौर पर देखे तो दुनिया में अनेकों देश है जहां पर वर्षा काफी कम होती है। मगर उन्होंने कृषि में तकनीक का प्रयोग करके अपने आप को कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना लिया है। उन देशों में अग्रणी है इजरायल।
ऊपर दिए हुए उदहारण को देखते हुए हम यह कह सकते है कि भारत कृषि क्षेत्र में मौजूदा स्तर से काफी अच्छा कर सकता है। मगर आज हम चर्चा करेंगे बिहार के कृषि क्षेत्र में पिछड़े होने का।
बिहार में कृषि के पिछड़ेपन का कारण
कृषि में पिछड़ने का पहला कारण है, बिहार में काफी पहले से लंबित भूमि सुधार का ना होना। उन सुधारो में जो सबसे जरूरी सुधार होना है, वह है बिहार में कृषि भूमि का चकबंदी होना। चुकी बिहार में जो कृषि योग्य भूमि है वह काफी छोटे हिस्सो में किसानों के बीच बटी हुई है।
छोटे टुकड़े में कृषि भूमि होने के कारण जो छोटे किसान है उन्हें काफी तकलीफ़ होती है। खास कर फसलों की सिंचाई पर उनका खर्च काफी बढ़ जाता है।
जिन किसानों की भूमि छोटे टुकड़ों में बटी होती है, वहां पर छोटे किसानों को फसल उगाने में लागत अधिक आती है। वहीं जिन किसानों कि भूमि बड़ी होती उनकी लागत कम हो जाता है, और आमदनी बढ़ जाती है।
बिहार में आज भी भूमि से जुड़ी बहुत अधिक मात्रा में मुकदमे लंबित है। जिसे होता ये है कि, कहने को तो वह कृषि भूमि कि गिनती में आती है। मगर विवादित भूमि होने के कारण उस भूमि पर कृषि नहीं हो पा रही है।
ग्रामीण क्षेत्र के अधिकतम मुकदमे कहीं ना कहीं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि भूमि से संबंधित होती है। अगर भूमि सुधार की तरफ सरकार ने फौरन ध्यान नहीं दिया तो काफी विलंब हो जाएगी। और बिहार विकास के दौड़ में काफी पीछे छूट जाएगा।
बिहार में समुचित सिंचाई व्यवस्था का ना होना
ऊपर दिए गए शीर्षक का तात्पर्य ये है कि बिहार के कई हिस्सो में बाढ़ कि समस्या है। तो वहीं कुछ हिस्सो में सुखे से हाल बेहाल है।
बिहार का उत्तरी भाग मॉनसून में अतिवृष्टि के कारण हर वर्ष बाढ़ की समस्या से पीड़ित रहता है। वहीं बिहार के दक्षिणी भाग में उत्तर के मुकाबले बारिश कम होती है।
फिर प्रश्न ये उठता है कि आखिर इस समस्या का सामाधान क्या है ? हमारी राय में इसका समाधान इसके मूल समस्या में ही छुपी हुई है। कहने का मतलब ये है कि, अगर हम उत्तर बिहार के अतिरिक्त जल को दक्षिण बिहार की तरफ मोड़ दे तो दोनों समस्या यों का हल निकल सकता है।
ऊपर बताया गया उपाय इतना आसान भी नहीं है। क्यों कि दक्षिण बिहार उत्तर बिहार के मुकाबले औसतन उच्चा है। मगर सरकार चाहे तो इतना कठिन भी नहीं है।
सिंचाई के लिए तेलंगाना मॉडल अपनाना होगा
इस काम को तेलंगाना राज्य में सफलता पूर्वक कर दिखाया है। तेलंगाना के कलेश्वरम् परियोजना से सैकड़ों एकड़ भूमि की सिंचाई हो रही है।
इस परियोजना को इतने आकार और पैमाने पर बनाया गया। क्योंकि गोदावरी समुद्र तल से 100 मीटर नीचे बहती है। जबकि तेलंगाना समुद्र तल से 300 से 650 मीटर ऊपर स्थित है। अधिकारियों के अनुसार, इतनी क्षमता वाले विशालकाय पंपों का उपयोग करके पानी को पंप करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था।
तत्कालीन तमाम समस्याओ को ध्यान में रखे तब भी ऊपर बताई गई दो समस्या ही बिहार के कृषि में पिछड़ने के कारण प्रतीत होते है।
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उम्मीद है हमने बिहार में कृषि के पिछड़ेपन का कारण से जुड़े सारे पहलुओ का उत्तर दे दिया होगा।
फिर भी कोई सवाल या सुझाव हो तो कमेन्ट करके जरूर बताए।